लइका मन धुर्रा मं सने सने घर आगे,
चिरई चुरगुन अमली के डारा मं सकलागे
तरिया के पार जइसे झमके रे झांझ।
खेत खार बखरी मं गहिरागे साँझ।
थके हारे मेड पार कांसी उंघाये रे
चौरा मं राऊत टूरा बंसरी बजाये रे
संगी रे पैरा ल कोठ मं गाँज
खेत खार बखरी मं गहिरागे साँझ।
दिन भर के भूख प्यास खाले पेट भरहा
सोझियाले हाथ गोड लागे अलकरहा
नोनी बटकुलिया ल झट कुन मांज
खेत खार बखरी मं गहिरागे साँझ।
पवन दीवान